महिमा
महंगाई की
ऐ महंगाई इस दुनिया मैं तेरा ही बोल बाला
तेरे आने से अच्छे –अच्छो का निकल रहा दिवाला
क्योंकि तेरे आने का कोई मौसम नही आता
जब तू आती हैं तो तेरा प्रवहा कम नहीं होता
तू छू रही आसमां को तो धरती वालो को क्यों सताती हैं
बरसाती मेंढक की तरह तू उछल उछल कर आती हैं
हम चाहे लाख कोशिश कर ले पर तू नही घटती हैं
भूचाल की तरह आती हैं ज्वालामुखी की तरह फटती हैं
तू राज बदल देती हैं समाज बदल देती हैं
तू लोगो के जीने का अंदाज बदल देती हैं
प्रथ्वी के लिए तू भार हैं गरीबों के लिए तलवार हैं
मेरी इस कविता की पंकितियों मैं तेरा तिरस्कार
हैं
तेरी इस अद्भुत महिमा से केवल सस्ता हैं इन्सान
ऐ महंगाई इस दुनियां से तू हो जा अंतरध्यान ||
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