एक दीपक तो जला होगा 
सोचा था शहर में एक दीपक तो जला होगा

अँधेरी भीगी सी रात में रोशनी का कोई तो निशाँ होगा

सडको पर कहने को बत्तिया तो टिमटिमा रही थी

 पर पूरे शहर में आसरे की परछाई भी नहीं थी ||



सिर्फ भीगी रात मेरा पता पूछ रही थी

दीवारों को देखा तो वो भी मुह मोड़े खड़ी थी

विकल्पों की दुनिया में स्थिरता ढूँढ रहा था

भूल गया था ये दुनिया इंसानियत की बाघी हो चुकी थी ||


 सालों चलता रहा  जिस  पगडंडी पर मै

आगे चलकर देखा वो किसी और रास्ते से मिल चुकी थी

मैंने खाली सड़क से पूछा , आदमी यहाँ कुछ पल तो रुका होगा
सोचा था शहर में , एक दीपक तो जला होगा ||


शाम का पंछी भी मुहँ मोड़ के निकला है मुझसे
मेरी गलती को दिखा सके वो आइना तो बना होगा

रास्ते भी टेढ़े हो गए है कारवां को बहकाने के लिए
समय जैसे ठहर गया हो संयम आजमाने के लिए ||


अँधेरा चुप है बेबस है खामोश है पर साथ खड़ा तो है  

उजाला तो सिर झुकाए बैठा नज़रे मिलाता ही नहीं है

पर सोचता हूँ सूरज से नजरें मिलानी होंगी

मंजिल तक पहुँच सकूँ ऐसी अपनी राह खुद बनानी होगी ||


रास्ते के उजाले मांगे रोशनी मुझसे

अपनी हस्ती इतनी रोशन बनानी होगी  

ऐसा कर आगे बढूँ यहीं किस्मत में लिखा होगा

सोचा था शहर में , एक दीपक तो जला होगा

अँधेरी भीगी सी रात में , रोशनी का कोई तो निशां होगा ||


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