19
September

           

                           

                      
                  मंज़िल तुझे पुकार रही हैं


1-  मै गुमनामी के अंधेरो मैं बैठा हुआ सोच रहा हूँ

   की कोई तो राह मुझे दिखाई तो दे

   असफलताओ की चपेट मुझे पीछे कर रही हैं

   तभी सूरज की एक किरण मुझसे आकर कहती हैं
   
   मंज़िल तुझे पुकार रही हैं , मंज़िल तुझे पुकार रही हैं ||


2  लाखों मील असफलताओ के पीछे चलकर थक गया हुआ मैं

   सूरज की गरम लपटों से जलकर गिर गया हूँ मैं

   तभी तरुवर की एक छाया आकर मुझसे कहती है

   तू रुक मत तू थक मत मैं रहूंगी तेरे साथ तेरी साथी बनकर
   
   मंज़िल तुझे पुकार रही हैं ,मंज़िल तुझे पुकार रही हैं ||


3.   नदियाँ के जल की विपरीत दिशा  मैं आगे बढ़ता हुआ 


     लेकिन  लहेरे  मुझे पीछे धकेल रही है   


      तभी तरुवर  का एक  पत्ता मुझे आकर कहता है  

                                              
   डूबता हैं वो जिनको मंजिल दिखाई देती नहीं हैं

   तैर जाते हैं वो जिनके होसलो मैं उड़ान होती हैं

   तू रुक मत तू थक मत
  
    मंज़िल तुझे पुकार रही हैं, मंज़िल तुझे पुकार रही हैं ||


4.  भरकर मन मैं जोश और उमंग बढ़ता चल अपने केंद्र की और

    न डर तू अंधकार से न लहेरो की चपेटों से 

    ना डर तू हवाओ के रुख से 
  
    धरा का जर्रा जर्रा बोलेगा –
   
    मंज़िल तुझे पुकार रही हैं  मंज़िल तुझे पुकार रही हैं ||








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